पुस्तक समीक्षा: ‘बा’ - गांधी के सत्य के पीछे की सत्यगृही
भारत की आज़ादी की कहानी अक्सर कुछ सीमित नामों के इर्द-गिर्द कही जाती है—महात्मा गांधी, नेहरू, भगत सिंह या सुभाषचंद्र बोस। पर इतिहास के इन पन्नों में जो स्त्रियाँ स्याही की तरह घुली हुई हैं, उनकी आवाज़ शायद ही कभी पूरी तरह सुनी गई हो। गिरीराज किशोर का उपन्यास ‘बा’ उसी गुमनाम आवाज़ को पहचान देने की कोशिश है — कस्तूरबा गांधी, जो सिर्फ़ “बापू की पत्नी” नहीं, बल्कि संघर्ष, सहिष्णुता और आत्मबल की प्रतिमूर्ति थीं।









